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बाला सुंदरी माता महामाई को हमारा नमस्कार हैमहादेवी वक्ष स्थल की और शोकविनाशनी देवी मन की रक्षा करें. ललिता देवी ह्रदय में और शूल धारिणी उदार में रहकर रक्षा करें. नाभि में कामिनी और गुह्यभाग की गुह्येश्वरी रक्षा करें. पूतना और कामिका लिंग की महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करें. II भगवती कटिभाग में और विंध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें. सम्पूरण कामनाओं को देनी वाली महाबला दोनों पिंडलियों की रक्षा करें II ३१II नरसिहीं दोनों घुट्ठियों की और तैजसी देवी दोनों चरणों के पृष्ठ भाग की रक्षा करें श्रीदेवी पैरों की अँगुलियों में और तलवासिनी पैरों के तलवों में रहकर रक्षा करें
कौमारी दाँतों की और चंडिका कंठ प्रदेश की रक्षा करें I चित्र घण्टा गले की घांटी की और महामाया तालू में रह कर रक्षा करें II २५ II कामाक्षी थोढी की और सर्वमंगला मेरी वाणी की रक्षा करें I भद्रकाली ग्रीवा में धनुर्धरी पृष्ठवंश (मेरुदण्ड) में रह कर रक्षा करें II २६ II कन्ठ के बाहरी भाग में नीलग्रीवा और कंठ की नली में नलकूबरी रक्षा करें I दोनों कन्धों में खडगिनी और मेरी दोनों भुजाओं की वज्रधारणी रक्षा करें II २७ II दोनों हाथों में दण्डनी और अंगूलियों में अम्बिका रक्षा करें I शूलेश्वरी नखों की रक्षा करें I कूलेश्वरी कूक्षि (पेट )- में रहकर रक्षा करें II २८ II
वाम भाग में अजीता और दक्षिण भाग में अपराजीता रक्षा करें I उद्योतिनी शिखा की रक्षा करें I उमा मेरे मस्तकपर विराजमान होकर रक्षा करें II २१ II ललाट में मालाधरी रक्षा करें और यशस्विनी देवी मेरी भोहों का संरक्षण करें I भोहों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यम घंटा देवी रक्षा करें II २२ II
नासिका में सुगन्धा और ऊपर के ओठ में चचिका देवी रक्षा करें. नीचे के ओठमें अमृतकला तथा जीव्हा में सरस्वती रक्षा करे II २४ IIनासिका में सुगन्धा और ऊपर के ओठ में चचिका देवी रक्षा करें. नीचे के ओठमें अमृतकला तथा जीव्हा में सरस्वती रक्षा करे II २४ II
(कवच आरंभ करने से पहले इस प्रकार प्राथना करनी चाहिये ) महान रोद्ररूप, अत्यंत घोर प्रकारम, महान उत्साह वाली देवी !तुम महान भय का नाश करने वाली हो, तुम्हे नमस्कार है, II १६ II तुम्हारी ओर देखना भी कठिन है. शत्रून का भय बढाने वाली जगदम्बिके ! मेरी रक्षा करो.
पूर्व दिशा में इन्द्र (इंद्र शक्ति ) मेरी रक्षा करे . अग्नि कोण में अग्निशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही तथा नैमऋर्त्यकोण में खगधारणी मेरी रक्षा करें II १७-१८ II उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण शूल धारणी देवी रक्षा करें. ब्रह्मणि ! तुम ऊपर की ओर से मेरी रक्षा करो और वैष्णवी देवी नीचे की ओर से मेरी रक्षा करें II १९ II इसी प्रकार शव को अपना वहां बनाने वाली चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें. जाया आगे से और वियाया पीछे की ओर से मेरी रक्षा करें II २० II
बाला सुंदरी माता महामाई को हमारा नमस्कार हैवृषभपर आरूढ़ इश्वारिदेवी ने श्वते रूप धारण कर रखा है ब्राह्मी देवी हंस पर बैठी हुई हैं और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं. II ११ II इस प्रकार ये सभी माताएँ सभी प्रकार की योग शक्ति से संपन्न हैं. इनके सिवा और भी बहुत सी देवियाँ हैं, जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं II १२ II ये सम्पूरण देवियाँ क्रोध से भरी हुई हैं, और भक्तों की रक्षा के लिये रथ पर बैठी दिखाई देती हैं. शंख , चक्र , गदा , शक्ति , हल और मुसल, खेटक और तोमर, परशु तथा पाश, कुंत और त्रिशूल एवं उत्तम शार्न्गधनुष आदि अस्त्र शास्त्र अपने हाथों में धारण करती हैं. दैत्यों के शारीर का नाश करना, भक्तों को अभय दान देना और देवताओं का कल्याण करना ---यही उनके शास्त्र -धारण का उद्देश्य है II १३- १५ II
बाला सुंदरी माता महामाई को हमारा नमस्कार है
जिन्हों ने भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है . देवेश्वरी ! जो तुम्हारा चिंतन करतें हैं उनकी तुम निसंदेह रक्षा करती हो II ८ II चामुण्डा देवी प्रेत्पर आरूढ़ होती है .वाराही भैसे पर सवारी करती है. ऐन्द्री का वहां ऐरावत हाथी है. वैष्णवी देवी गरुड़ पर ही आसन जमाती है II ९ II महेश्वरी वृषभपर आरूढ़ होती है. कौमारी का वाहन मयूर है. भगवन विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी देवी कमल के आसन पर विराजमान हैं और हाथों में कमल धारण किये हुए हैं II १० II
एक बार बाबा फरीद कहीं जा रहे थे। एक व्यक्ति उनके साथ चलने लगा। उसकी जिज्ञासा ने उसे बाबा के साथ कर दिया था। व्यक्ति ने बाबा से पूछा , ' क्रोध को कैसे जीतें , काम को कैसे जीतें ?'
ऐसे प्रश्न लोग बाबा से पूछते रहते थे। बाबा ने बड़े स्नेह से उस व्यक्ति का हाथ पकड़ा और बोले , ' तुम थक गए होगे। चलो किसी पेड़ की छाया में विश्राम करते है। ' बाबा बोले , ' बेटा ! समस्या क्रोध और काम को जीतने की नही , उन्हें जानने की है। वास्तव में न हम क्रोध को जानते है और न काम को। हमारा यह अज्ञान है कि हमें बार - बार हराता है। इन्हें जान लो तो समझो जीत पक्की है। जब हमारे अंदर क्रोध प्रबल होता है , काम प्रबल होता है , तब हम नहीं होते हैं। हमें होश ही नहीं होता है। इस बेहोशी में जो कुछ होता है , वह मशीनी यंत्र की भांति हम किया करते हैं। बाद में केवल पछतावा बचता है। बात तो तब बने , जब हम फिर से सोयें नहीं। अंधेरे में पड़ी रस्सी सांप जैसी नजर आती है। इसे देख कर कुछ तो भागते हैं , कुछ उससे लड़ने की ठान लेते हैं। लेकिन गलती दोनों ही करते है। ठीक तरह से देखने पर पता चलता है कि वहां सांप तो है ही नहीं। बस जानने की बात है। इस तरह इंसान को अपने को जानना होता है। अपने में जो भी है , उससे ठीक से परिचित भर होना है। बस , फिर तो बिना लड़े ही जीत हासिल हो जाती है। '
उस व्यक्ति को अपने सवाल का जवाब मिल गया।
उस व्यक्ति को अपने सवाल का जवाब मिल गया।
मेरा बेड़ा लगा दे पार, मैया जगदम्बे I तेरे भक्त खड़े हैं द्वार, मैया जगदम्बे I मैया जगदम्बे......सिहं बली पर होवे सवारी I हाथों में है यह त्रिशूल भiरी I तेरी शक्ति का अवतार मैया जगदम्बे I मैया जगदम्बे.......ऊँचे पर्वत पर भवन तिहारे I लंगुरिया सबसे अगवारे I तेरी महिमा है अपरम्पार, मैया जगदम्बे I मैया जगदम्बे ......दूर दूर से आवें नर नारी I दर्शन पाकर होवें सुखारी I तेर हो रही जय जयकार, मैया जगदम्बे I मैया जगदम्बे.......भक्त खड़े तेरे गुण गावें I जगदम्बे माँ तुझको मनावें I अब सुन ले मेरी पुकार, मैया जगदम्बे I मैया जगदम्बे ......
नारायण उवाचसर्व सम्पत्प्रदस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः। ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवी पद्मालया स्वयम्॥१॥धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः। पुण्यबीजं च महतां कवचं परमाद्भुतम्॥२॥ॐ ह्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा मे पातु मस्तकम्। श्रीं मे पातु कपालं च लोचने श्रीं श्रियै नमः॥३॥ॐ श्रीं श्रियै स्वाहेति च कर्णयुग्मं सदावतु। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा मे पातु नासिकाम्॥४॥ॐ श्रीं पद्मालयायै च स्वाहा दन्तं सदावतु। ॐ श्रीं कृष्णप्रियायै च दन्तरन्ध्रं सदावतु॥५॥ॐ श्रीं नारायणेशायै मम कण्ठं सदावतु। ॐ श्रीं केशवकान्तायै मम स्कन्धं सदावतु॥६॥ॐ श्रीं पद्मनिवासिन्यै स्वाहा नाभिं सदावतु। ॐ ह्रीं श्रीं संसारमात्रे मम वक्षः सदावतु॥७॥ॐ श्रीं श्रीं कृष्णकान्तायै स्वाहा पृष्ठं सदावतु। ॐ ह्रीं श्रीं श्रियै स्वाहा मम हस्तौ सदावतु॥८॥ॐ श्रीं निवासकान्तायै मम पादौ सदावतु। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रियै स्वाहा सर्वांगं मे सदावतु॥९॥प्राच्यां पातु महालक्ष्मीराग्नेय्यां कमलालया। पद्मा मां दक्षिणे पातु नैर्ऋत्यां श्रीहरिप्रिया॥१०॥पद्मालया पश्चिमे मां वायव्यां पातु श्रीः स्वयम्। उत्तरे कमला पातु ऐशान्यां सिन्धुकन्यका॥११॥नारायणेशी पातूर्ध्वमधो विष्णुप्रियावतु। संततं सर्वतः पातु विष्णुप्राणाधिका मम॥१२॥इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्। सर्वैश्वर्यप्रदं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥१३॥सुवर्णपर्वतं दत्त्वा मेरुतुल्यं द्विजातये। यत् फलं लभते धर्मी कवचेन ततोऽधिकम्॥१४॥गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं धारयेत् तु यः। कण्ठे वा दक्षिणे वाहौ स श्रीमान् प्रतिजन्मनि॥१५॥अस्ति लक्ष्मीर्गृहे तस्य निश्चला शतपूरुषम्। देवेन्द्रैश्चासुरेन्द्रैश्च सोऽत्रध्यो निश्चितं भवेत्॥१६॥स सर्वपुण्यवान् धीमान् सर्वयज्ञेषु दीक्षितः। स स्नातः सर्वतीर्थेषु यस्येदं कवचं गले॥१७॥यस्मै कस्मै न दातव्यं लोभमोहभयैरपि। गुरुभक्ताय शिष्याय शरणाय प्रकाशयेत्॥१८॥इदं कवचमज्ञात्वा जपेल्लक्ष्मीं जगत्प्सूम्। कोटिसंख्यं प्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सोद्धिदायकः॥१९॥
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