Tuesday, 5 March 2013

बसी हो कण कण

तुम बसी हो कण कण अंदरतुम बसी हो कण कण अंदर माँ, हम ढूढंते रह गये मंदिर में |हम मूढमति हम अनजाने माँ सार, तुम्हारा क्या जाने || तुम बसी.......तेरी माया को ना जान सके, तुझको ना कभी पहचान सके |हम मोह की निंद्रा सोये रहे, माँ इधर उधर ही खोये रहे |
तू सूरज तू ही चंद्रमा, हम ढूढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
हर जगह तुम्हारे डेरे माँ, कोइ खेल ना जाने तेरे माँ |
इन नैनों को ना पता लगे, किस रुप में तेरी ज्योत जगे |
तू परवत तु ही समंदर माँ, हम ढूढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
कोइ कहता तुम्ही पवन में हो, और तुम्ही ज्वाला अगन में हो |
कहते है अंबर और जमी, तुम सब कुछ हो हम कुछ भी नहीं
फल फुल तुम्ही तरुवर माँ, हम ढुढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
तुम बसी हो कण कण अंदर माँ, हम ढुढंते रह गये मंदिर में |
हम मूढमति हम अज्ञानी, माँ सार तुम्हारा क्या जाने ||
तू सूरज तू ही चंद्रमा, हम ढूढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदरहर जगह तुम्हारे डेरे माँ, कोइ खेल ना जाने तेरे माँ |इन नैनों को ना पता लगे, किस रुप में तेरी ज्योत जगे |तू परवत तु ही समंदर माँ, हम ढूढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदरकोइ कहता तुम्ही पवन में हो, और तुम्ही ज्वाला अगन में हो |कहते है अंबर और जमी, तुम सब कुछ हो हम कुछ भी नहींफल फुल तुम्ही तरुवर माँ, हम ढुढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदरतुम बसी हो कण कण अंदर माँ, हम ढुढंते रह गये मंदिर में |हम मूढमति हम अज्ञानी, माँ सार तुम्हारा क्या जाने ||


देवी छमा प्रार्थना :-


न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो,
न चाह्वानं ध्यानं तदपि वः न जाने स्तुतिकथा:!
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं,
परं जाने मातस्त्वदनुसरण क्लेशहरनम !!१!!
...विधेरज्ञानेन द्रविनाविराहेनालासताया,
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिराभूत!
तदेतत्क्षन्ताव्यं जननि सकलोद्धारीणि शिवे,
कुपुत्रो जायत व्कचिदापी कुमाता न भवति !!२!!
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:
परं तेषां मध्ये विरलतर लोsहं तव सूत:!
मदीयोsयं त्याग: समुचितमिदं नो शिवे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति !!३!!

हर चीज में भगवान हैं!

एक गुरुजी थे। उनके आश्रम में कुछ शिष्य शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। एक बार बातचीत में एक शिष्य ने पूछा -गुरुजी, क्या ईश्वर सचमुच है? गुरुजी ने कहा - ईश्वर अगर कहीं है तो वह हम सभी में है। शिष्य ने पूछा - तो क्या मुझमें औरआपमें भी ईश्वर है?गुरुजी बोले - बेटा, मुझमें, तुममें, तुम्हारे सारे सहपाठियों में और हर जीव-जंतु में ईश्वर है। जिसमें जीवन है उसमें ईश्वर है। शिष्य ने गुरुजी की बात याद कर ली।
कुछ दिनों बाद शिष्य जंगल में लकड़ी लेने गया। तभी सामने से एक हाथी बेकाबू होकर दौड़ता हुआ आता दिखाई दिया। हाथी के पीछे-पीछे महावत भी दौड़ता हुआ आ रहा था और दूर से ही चिल्ला रहा था - दूर हट जाना, हाथी बेकाबू हो गया है, दूर हट जाना रे भैया, हाथी बेकाबू हो गया है।
उस जिज्ञासु शिष्य को छोड़कर बाकी सभी शिष्य तुरंत इधर-उधर भागने लगे। वह शिष्य अपनी जगह से बिल्कुल भी नहीं हिला, बल्कि उसने अपने दूसरे साथियों से कहा कि हाथी में भी भगवान है फिर तुम भाग क्यों रहे हो? महावत चिल्लाता रहा, पर वह शिष्य नहीं हटा और हाथी ने उसे धक्का देकर एक तरफ गिरा दिया और आगे निकल गया। गिरने से शिष्य होश खो बैठा।
कुछ देर बाद उसे होश आया तो उसने देखा कि आश्रम में गुरुजी और शिष्य उसे घेरकर खड़े हैं। साथियों ने शिष्य से पूछा कि जब तुम देख रहे थे कि हाथी तुम्हारी तरफ दौड़ा चला आ रहा है तो तुम रस्ते से हटे क्यों नहीं? शिष्य ने कहा - जब गुरुजी ने कहा है कि हर चीज में ईश्वर है तो इसका मतलब है कि हाथी में भी है। मैंने सोचा कि सामने से हाथी नहीं ईश्वर चले आ रहे हैं और यही सोचकर मैं अपनी जगह पर खड़ा रहा, पर ईश्वर ने मेरी कोई मदद नहीं की।
गुरुजी ने यह सुना तो वे मुस्कुराए और बोले -बेटा, मैंने कहा था कि हर चीज में भगवान है। जब तुमने यह माना कि हाथी में भगवान है तो तुम्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए था कि महावत में भी भगवान है और जब महावत चिल्लाकर तुम्हें सावधान कर रहा था तो तुमने उसकी बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया? शिष्य को उसकी बात का जवाब मिल गया था।

चामुंडा देवी

हिन्दू श्रद्धालुओं का मुख्य केंद्र और 51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी देव भूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है. बानेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शंकर माता सती को अपने कंधे पर उठाकर घूम रहे थे, तब इसी स्थान पर माता का चरण गिर पड़ा था और माता यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गई. चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है. भक्तों में मान्यता है कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना और सुनाना श्रेष्ठकर है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है.
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया. माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी. मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं.
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया. माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी. मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं.

श्री दुर्गा कवच

ऋषि मार्कंड़य ने पूछा जभी !दया करके ब्रह्माजी बोले तभी !!के जो गुप्त मंत्र है संसार में !हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में !!हर इक का कर सकता जो उपकार है !जिसे जपने से बेडा ही पार है !!पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का !जो हर काम पूरे करे सवाल का !!सुनो मार्कंड़य मैं समझाता हूँ !मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ !!कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना !जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता !!नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये !उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये !!कहो जय जय जय महारानी की !जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!पहली शैलपुत्री कहलावे !दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे !!तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम !चौथी कुश्मांड़ा सुखधाम !!पांचवी देवी अस्कंद माता !छटी कात्यायनी विख्याता !!सातवी कालरात्रि महामाया !आठवी महागौरी जग जाया !!नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने !नव दुर्गा के नाम बखाने !!महासंकट में बन में रण में !रुप होई उपजे निज तन में !!महाविपत्ति में व्योवहार में !मान चाहे जो राज दरबार में !!शक्ति कवच को सुने सुनाये !मन कामना सिद्धी नर पाए !!चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार !बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार !!कहो जय जय जय महारानी की !जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!हंस सवारी वारही की !मोर चढी दुर्गा कुमारी !!लक्ष्मी देवी कमल असीना !ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा !!ईश्वरी सदा बैल सवारी !भक्तन की करती रखवारी !!शंख चक्र शक्ति त्रिशुला !हल मूसल कर कमल के फ़ूला !!दैत्य नाश करने के कारन !रुप अनेक किन्हें धारण !!बार बार मैं सीस नवाऊं !जगदम्बे के गुण को गाऊँ !!कष्ट निवारण बलशाली माँ !दुष्ट संहारण महाकाली माँ !!कोटी कोटी माता प्रणाम !पूरण की जो मेरे काम !!दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ !चमन की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ !!कहो जय जय जय महारानी की !जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!अग्नि से अग्नि देवता !पूरब दिशा में येंदरी !!दक्षिण में वाराही मेरी !नैविधी में खडग धारिणी !!वायु से माँ मृग वाहिनी !पश्चिम में देवी वारुणी !!उत्तर में माँ कौमारी जी!ईशान में शूल धारिणी !!ब्रहामानी माता अर्श पर !माँ वैष्णवी इस फर्श पर !!चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो !संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!सन्मुख मेरे देवी जया !पाछे हो माता विजैया !!अजीता खड़ी बाएं मेरे !अपराजिता दायें मेरे !!नवज्योतिनी माँ शिवांगी !माँ उमा देवी सिर की ही !!मालाधारी ललाट की, और भ्रुकुटी कि यशर्वथिनी !भ्रुकुटी के मध्य त्रेनेत्रायम् घंटा दोनो नासिका !!काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी !नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो !!संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!ऊपर वाणी के होठों की !माँ चन्द्रकी अमृत करी !!जीभा की माता सरस्वती !दांतों की कुमारी सती !!इस कठ की माँ चंदिका !और चित्रघंटा घंटी की !!कामाक्षी माँ ढ़ोढ़ी की !माँ मंगला इस बनी की !!ग्रीवा की भद्रकाली माँ !रक्षा करे बलशाली माँ !!दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारनी !दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जग तारनी !!शुलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी !जंघा स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जग वासिनी !!हृदय उदार और नाभि की, कटी भाग के सब अंग की !गुम्हेश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की !!घुटनों जन्घाओं की करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी !टकखनों व पावों की करे, रक्षा वो शिव की दासनी !!रक्त मांस और हड्डियों से, जो बना शरीर !आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर !!बल बुद्धि अंहकार और, प्राण ओ पाप समान !सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान !!धार अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन !तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण !!आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार !ब्रह्मणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार !!विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल !दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल !!भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश !मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश !!यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये !कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए !!है जग जननी कर दया, इतना दो वरदान !लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान !!मन वांछित फल पाए वो, मंगल मोड़ बसाए !कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर मे आये !!ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंड़य !यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया !!रहा आज तक था गुप्त भेद सारा !जगत की भलाई को मैंने बताया !!सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित !है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया !!चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो !सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया !!जो संसार में अपने मंगल को चाहे !तो हरदम कवच यही गाता चला जा !!बियाबान जंगल दिशाओं दशों में !तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा !!तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में !कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा !!निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे !चमन पाव आगे बढ़ता चला जा !!तेरा मान धन धान्य इससे बढेगा !तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए !!यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा !यही तेरे सिर से हर संकट हटायें !!यही भूत और प्रेत के भय का नाशक !यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये !!इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर !जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए !!इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढे !कृपा से आधी भवानी की, बल और बुद्धि बढे !!श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम !सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम !!कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादाँ !तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण !!!! जय माता दी !!

दिव्य पौधा

तुलसी एक :-   भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है और इस पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऎसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता उस घर में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आंगन में स्थापित कर सारा परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

* लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 पत्तियों को गर्म पानी से धोकर रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।
* पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से आराम मिलता है।
* पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।
* बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।
* खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
* सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से बचाव के लिए तुलसी की लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।
* श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।
* गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई हो तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।
* हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।
* तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।
* मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।
* त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।
* सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा कारगर साबित होती है।
* सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।
* आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।
* कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में भून लें और लहसुन का रस मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।
* ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना चाहिए।
* तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर खाने से वात रोग दूर हो जाता है।
* कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से काफी लाभ मिलता है।
* तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर देने से बच्चों के पेट फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।
* तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होता है।
* तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता है।
* बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल से बचाव रहेगा।
* शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में वृध्दि होती है।

रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें अमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। नई खोज से पता चला है इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्र्म्ह्चर्य की रक्षा करने एवं यह त्रिदोषनाशक है।

* लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 पत्तियों को गर्म पानी से धोकर रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।* पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से आराम मिलता है।* पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।* बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।* खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।* सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से बचाव के लिए तुलसी की लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।* श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।* गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई हो तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।* हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।* तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।* मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।* त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।* सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा कारगर साबित होती है।* सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।* आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।* कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में भून लें और लहसुन का रस मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।* ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना चाहिए।* तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर खाने से वात रोग दूर हो जाता है।* कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से काफी लाभ मिलता है।* तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर देने से बच्चों के पेट फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।* तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होता है।* तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता है।* बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल से बचाव रहेगा।* शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।* तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।* तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में वृध्दि होती है।
रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें अमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। नई खोज से पता चला है इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्र्म्ह्चर्य की रक्षा करने एवं यह त्रिदोषनाशक है।

महाकाली तेरी आरती

अम्बे तू है जगदम्बे काली
जय दुर्गे खप्पर वाली
तेरे ही गुन गाये भारती
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती

उतारे तेरी आरती
महाकाली तेरी आरती

तेरे भक्तजनों पर माता
घिर पड़ी है भारी
दानव दल पर टूट पडो
माँ कर के सिंह सवारी

सो सो सिंहो से है बलसाली
है दस भुजा वाली
दुखियों के दुःख निवारती
ओ मैया ...

माँ तेरा है इस जग मैं
बड़ा ही निर्मल नाता
पूत कपूत सुने है पर ना
माता सुनी कुमाता

सब पे करुना बरसाने वाली
अमृत बरसाने वाली
दुखियों के दुःख निवारती
ओ मैया...

ना मांगे हम धन और दौलत
ना चांदी ना सोना
हम तो मांगे माँ तेरे मन मैं
एक छोटा सा कौना

सबकी बिगड़ी बनाने वाली
लाज बचाने वाली
सदिओं के सत् को संवारती
ओ मैया

श्रीदुर्गाष्टोत्तार्शत्ननाम्स्त्रोतम

शंकर जी पार्वती जी से कहते हैं ---कमलानने ! अष्टोत्तरशत नाम का वर्णन करता हूँ , सुनो I जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण ) मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती है II १ ॐ सती २ साध्वी ३ भवप्रीता (भगवान शिव पर प्रीति रखनेवाली )
४ भवानी
५ भवमोचनी(संसार बंधन से मुक्त करने वाली )
६ आर्या
७ दुर्गा
८ जया
९ आद्या
१० त्रिनेत्रा
११ शूलधारिणी
१२ पिनाकधारिणी
१३ चित्रा
१४ चंडघण्टा
१५ महातपा:(भरी तपस्या करने वाली )
१६ मन: (मनन - शक्ति)
१७ बुद्धि: (बोधशक्ति )
१८ अहंकारा (अहंता का आश्रय )
१९ चित्तरूपा
२०चिता
२१ चिति:(चेतना )
२२ सर्व- मन्त्र मयी
२३ सत्ता (सत् -स्वरूपा )
२४ सत्यानन्दस्वरूप्नी
२५ अनन्ता (जिस्केस्वरूप कहीं अंत नहीं )
२६ भाविनी(सबको उत्पन्न करने वाली )
२७ भाव्या ( भावना एवं ध्यान करने योग्य )
२८ भव्या ( कल्याणरूपा )
२९ अभव्या ( जिस बढ कर भव्य कहीं है नहीं )
३० सदा -गति:
३१ शाम्भवी (शिव प्रिय )
३२ देव माता
३३ चिंता
३४ रत्न प्रिया
३५सर्व विद्या
३६ दक्ष कन्या
३७ दक्ष यज्ञविनाशनी
३८ अपर्णा ( तपस्या के समय पत्तों को भी न खाने वाली )
३९ अनेक वर्णा (अनेक रंगों वाली)
४० पाटला (लाल रंग वाली )
४१ पाटलावती ( गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली )
४२ पट्टाम्बर परिधारना ( रेशमी वस्त्र पहनने वाली )
४३ कल मंज्ज़िर रंज्जनी ( मदुर धवनी करने वाले मंज्ज़िर को धारण करके प्रसन्न रहने वाली )
४४ अमेयविक्रमा ( असीम परक्रमवाली )
४५ क्रूरा ( दैत्यों के प्रति कठोर )
४६ सुंदरी
४७ सुरसुन्दरी
४८ वनदुर्गा
४९ मात न्ड्गी
५० मतंगमुनि पूजिता
५१ ब्राह्मी
५२ माहेश्वरी
५३ ऐन्द्री
५४ कौमारी
५५ वैष्णवी
५६ चामुंडा
५७ वाराही
५८ लक्ष्मी:
५९ पुरुषाकृति :
६० विमला
६१ उत्कर्शिनी
६२ ज्ञाना
६४ नित्या
६५ बुद्धिदा
६६ बहुला
६७ बहुलप्रेमा
६८ सर्ववहानवाहना
६९ निशुम्भशुम्भहननी
७० महिषासुरमर्दिनी

७१ मधुकैटभह्न्त्री
७२ चंडमुंडविनाशनी
७३ सर्वासुरविनाशा
७४ सर्वदानवघातिनी
७५ सर्वशास्त्र्मायी
७६ सत्या
७७ सर्वास्त्रधारिणी
७८ अनेकशास्त्रहस्ता
७९ अनेकास्त्रधारिणी
८० कुमारी
८१ एक कन्या
८२ कैशौरी
८३ युवती
८४ यति:
८५ अप्रौढा
८६ प्रौढ़ा
८७ वृद्दमाता
८८ बलप्रदा
८९ महोदरी
९० मुक्तकेशी
९१ घोररूपा
९२ महाबली
९३ अग्निज्वाला
९४ रौद्रमुखी
९५ कालरात्रि:
९६ तपस्वनी
९७ नारायणी
९८ भद्रकाली
९९ विष्णुमाया
१०० जलोदरी
१०१ शिवदूती
१०२ कराली
१०३ अनन्ता ( विनाशरहिता )
१०४ परमेश्वरी
१०५ कत्यानी
१०६ सावित्री
१०७ प्रत्यक्षा
१०८ ब्रह्मवादिनी
• जो भगवती दुर्गा के इन 108 नामों का नित्य पाठ करता है उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य (अप्राप्य)नहीं रहता । इस लोक में रहते हुए वह धन ,धान्य,पुत्र,अश्व एवं हाथी आदि ऐश्वर्य का भोग करते हुए धर्म ,अर्थ , काम व मोक्ष को प्राप्त करता है तथा अन्त में शाश्वत (नित्य) मुक्ति को प्राप्त होता है ।
४ भवानी ५ भवमोचनी(संसार बंधन से मुक्त करने वाली )६ आर्या७ दुर्गा ८ जया९ आद्या १० त्रिनेत्रा११ शूलधारिणी १२ पिनाकधारिणी १३ चित्रा१४ चंडघण्टा१५ महातपा:(भरी तपस्या करने वाली )१६ मन: (मनन - शक्ति)१७ बुद्धि: (बोधशक्ति )१८ अहंकारा (अहंता का आश्रय )१९ चित्तरूपा २०चिता २१ चिति:(चेतना )२२ सर्व- मन्त्र मयी२३ सत्ता (सत् -स्वरूपा )२४ सत्यानन्दस्वरूप्नी २५ अनन्ता (जिस्केस्वरूप कहीं अंत नहीं )२६ भाविनी(सबको उत्पन्न करने वाली )२७ भाव्या ( भावना एवं ध्यान करने योग्य )२८ भव्या ( कल्याणरूपा )२९ अभव्या ( जिस बढ कर भव्य कहीं है नहीं )३० सदा -गति:३१ शाम्भवी (शिव प्रिय )३२ देव माता ३३ चिंता ३४ रत्न प्रिया३५सर्व विद्या ३६ दक्ष कन्या ३७ दक्ष यज्ञविनाशनी ३८ अपर्णा ( तपस्या के समय पत्तों को भी न खाने वाली )३९ अनेक वर्णा (अनेक रंगों वाली)४० पाटला (लाल रंग वाली )४१ पाटलावती ( गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली )४२ पट्टाम्बर परिधारना ( रेशमी वस्त्र पहनने वाली )४३ कल मंज्ज़िर रंज्जनी ( मदुर धवनी करने वाले मंज्ज़िर को धारण करके प्रसन्न रहने वाली )४४ अमेयविक्रमा ( असीम परक्रमवाली )४५ क्रूरा ( दैत्यों के प्रति कठोर )४६ सुंदरी ४७ सुरसुन्दरी ४८ वनदुर्गा ४९ मात न्ड्गी५० मतंगमुनि पूजिता ५१ ब्राह्मी ५२ माहेश्वरी५३ ऐन्द्री ५४ कौमारी५५ वैष्णवी ५६ चामुंडा ५७ वाराही ५८ लक्ष्मी:५९ पुरुषाकृति :६० विमला ६१ उत्कर्शिनी६२ ज्ञाना६४ नित्या६५ बुद्धिदा ६६ बहुला ६७ बहुलप्रेमा ६८ सर्ववहानवाहना६९ निशुम्भशुम्भहननी७० महिषासुरमर्दिनी
७१ मधुकैटभह्न्त्री७२ चंडमुंडविनाशनी ७३ सर्वासुरविनाशा ७४ सर्वदानवघातिनी७५ सर्वशास्त्र्मायी ७६ सत्या७७ सर्वास्त्रधारिणी ७८ अनेकशास्त्रहस्ता ७९ अनेकास्त्रधारिणी ८० कुमारी ८१ एक कन्या ८२ कैशौरी ८३ युवती ८४ यति:८५ अप्रौढा८६ प्रौढ़ा ८७ वृद्दमाता८८ बलप्रदा ८९ महोदरी ९० मुक्तकेशी९१ घोररूपा ९२ महाबली ९३ अग्निज्वाला ९४ रौद्रमुखी ९५ कालरात्रि:९६ तपस्वनी ९७ नारायणी ९८ भद्रकाली ९९ विष्णुमाया१०० जलोदरी १०१ शिवदूती १०२ कराली१०३ अनन्ता ( विनाशरहिता )१०४ परमेश्वरी १०५ कत्यानी १०६ सावित्री १०७ प्रत्यक्षा १०८ ब्रह्मवादिनी• जो भगवती दुर्गा के इन 108 नामों का नित्य पाठ करता है उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य (अप्राप्य)नहीं रहता । इस लोक में रहते हुए वह धन ,धान्य,पुत्र,अश्व एवं हाथी आदि ऐश्वर्य का भोग करते हुए धर्म ,अर्थ , काम व मोक्ष को प्राप्त करता है तथा अन्त में शाश्वत (नित्य) मुक्ति को प्राप्त होता है ।

Monday, 4 March 2013

संतोषी माँ

जय संतोषी माँ जग जननी, खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी.गणपति देव तुम्हारे ताता, रिद्धि-सिद्धि कहलावहं माता.मात-पिता की रहो दुलारी, कीरति केहि विधि कहूँ तुम्हारी.क्रीट मुकुट सिर अनुपम भारी, कानन कुण्डल की छवि न्यारी.सोहत अंग छटा छवि प्यारी, सुन्दर चीर सुन्हरी धारी.आप चतुर्भुज सुघड़ विशाला, धारण करहु गले वन माला.निकट है गौ अमित दुलारी, करहु मयूर आप असवारी.जानत सबही आप प्रभुताई, सुर नर मुनि सब करहिं बढ़ाई.तुम्हरे दरश करत क्षण माई, दुख दरिद्र सब जाय नसाई.वेद पुराण रहे यश गाई, करहु भक्त का आप सहाई.ब्रह्मा ढ़िंग सरस्वती कहाई, लक्ष्मी रुप विष्णु ढ़िंग आई.शिव ढ़िंग गिरिजा रुप बिराजी, महिमा तीनों लोक में गाजी.शक्ति रुप प्रकट जग जानी, रुद्र रुप भई मात भवानी.दुष्ट दलन हित प्रकटी काली, जगमग ज्योति प्रचंड निराली.चण्ड मुण्ड महिशासुर मारे, शुम्भ निशुम्भ असुर हनि डारे.महिमा वेद पुरानन बरनी, निज भक्त के संकट हरनी.रुप शारदा हंस मोहिनी, निरंकार साकार दाहिनी.प्रकटाई चहुंदिश निज माया, कण कण में है तेज समाया.पृथ्वी सूर्य चन्द्र अरु तारे, तव इंगित क्रम बद्ध हैं सारे.पालन पोषण तुम्ही करता, क्षण भंगुर में प्राण हरता.बह्मा विष्णु तुम्हें निज ध्यावैं, शेश महेश सदा मन लावें.मनोकामना पूरण करनी, पाप काटनी भव भय तरनी.चित्त लगाय तुम्हें जो ध्याता, सो नर सुख सम्पत्ति है पाता.बन्ध्या नारि तुमहिं जो ध्यावै, पुत्र पुष्प लता सम वह पावैं.पति वियोगी अति व्याकुल नारी, तुम वियोग अति व्याकुलयारी.कन्या जो कोई तुमको ध्यावैं, अपना मन वांछित वर पावै.शीलवान गुणवान हो मैया, अपने जन की नाव खिवैया.विधि पूर्वक व्रत जो कोई करहीं, ताहि अमित सुख सम्पत्ति भरहीं.गुड़ और चना भोग तोहि भावै, सेवा करै सो आनन्द पावै.श्रद्धा युक्त ध्यान जो धरहीं, सो नर निश्चय भव सों तरहीं.उद्यापन जो करहि तुम्हारा, ताको सहज करहु निस्तारा.नारि सुहागिन व्रत जो करती, सुख सम्पत्ति सों गोद भरती.जो सुमिरत जैसी मन भावा, सो नर वैसो फ़ल पावा.सोलह शुक्र जो व्रत मन धारे, ताके पूर्ण मनोरथ सारे.सेवा करहि भक्ति युक्त जोई, ताको दूर दरिद्र दुख होई.जो जन शरण माता तेरी आवै, ताकै क्षण में काज बनावै.जय जय जय अम्बे कल्याणी, कृपा करौ मोरी महारानी.जो यह पढ़ै मात चालीसा, तापे करहिं कृपा जगदीशा.निज प्रति पाठ करै इक बारा, सो नर रहै तुहारा प्यारा.नाम लेत ब्याधा सब भागे, रोग दोश कबहूँ नही लागे.दोहासन्तोषी माँ के सदा बन्दहुँ पग निश वास.पुर्ण मनोरथ हों सकल मात हरौ भव त्रास.