पत्नी की सत्यनिष्ठा पति में होने को हिन्दू धर्म में आदर्श के रूप में देखा गया है । स्त्री संतान को जन्म देती है । बालक/बालिका को प्रारम्भिक संस्कार अपनी माता से ही मिलता है । यदि स्त्री स्वेच्छाचारिणी होगी तो उसकी संतान में भी उस दुर्गुण के आने की अत्यधिक सम्भावना रहेगी । पुरुष संतति-पालन का भार उठाने को प्राय: तभी तैयार होगा जब उसे विश्वास होगा कि उसकी पत्नी के उदर से उत्पन्न संतान का वास्तवि पिता वही है । पति की मृत्यु होने पर भी उत्तम संस्कार वाली स्त्री संतान के सहारे अपना बुढ़ापा काट सकती है । पश्चिम के आदर्शविहीन समाज में स्त्रियाँ अपना बुढ़ापा पति के अभाव में अनाथाश्रम में काटती हैं ।
No comments:
Post a Comment